हिन्दी साहित्य रस
परिभाषा = किसी काव्य को पढ़ते लिखते या देखते समय यदि आनंद की अनुभूति होती है तो उसे 'रस' कहते हैं!
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य =सर्व प्रथम भारत मुनि ने अपने ग्रंथ नाट्य शास्त्र में रसों का उल्लेख किया है उसमे रसों की संख्या =8 बताई गई है
नाटक विधा के अनुसार रसों की वर्तमान संख्या =9 है इसमे एक और रस जोड़ा गया - शांत रस
सर्व मतानुसार रसों की संख्या =11 है!
= रसों को काव्य की आत्मा कहा जाता है!
= श्रंगार रस को रसराज कहा जाता है!
रस के तत्व/अंग/अवयव= चार प्रकार के होते हैं!
(1) स्थाई भाव
(2) विभव
(3)अनुभाव
(4) संचारी भाव
स्थाई भाव = मन में सदेव ब्राज मान रहने वाले भाव इनकी संख्या-9 मानी गई है!
जैसे= हास्य, क्रोध, शोक, भय, उत्साह, विस्मय, जुगुप्सा, निर्वेद, रति आदि!
रस. स्थाई भाव
श्रंगार रस. रति
हास्य रस. हास
करुण. शोक
वीर. उत्साह
रौद्र. क्रोध
भयानक. भय
वीभत्स. घ्रणा /जुगुप्सा
अद्भुत. विस्मय/आश्चर्य
शांत. निर्वेद
वात्सल्य. वात्सल्य रति
भक्ति. भागवत रति अनुराग
= निर्वेद रस ' की खोज- 'उद्भट ऋषि ' ने की थी!
= वात्सल्य रस ' की खोज- 'विश्वनाथ ' ने की थी!
भक्ति रस' की खोज- 'रूप गोस्वामी' ने की थी!
विभाव= वे भाव जो स्थाई भाव को जाग्रत करते हैं विभाव कहलाते हैं! ये दो प्रकार के होते हैं -
(1) alamban
(2) उद्दीपन
अनुभाव = चार प्रकार के होते हैं-
(1)सात्विक
(2) kayyik
(3) वाचिक
(4) ahaary
संचारी भाव =इनकी संख्या- 33 मानी गई है!
पढ़ते रहिए दोस्तों
जय श्री राम दोस्तों
धन्यवाद





एक टिप्पणी भेजें